महाभारत

परिचय - लौकिक संस्कृत साहित्य में महाभारत का अत्यंत प्रमुख स्थान हैं। विश्व साहित्य में सबसे बड़ा ग्रन्थ महाभारत ही हैं, जिसमें लगभग एक लाख से कुछ अधिक श्लोक हैं। भारत के सांस्कृतिक विषयो का विराट कोश महाभारत हैं। भारतवर्ष के समस्त सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक आदि पक्षों का समावेश महाभारत में हैं।
 महाभारत के लेखक व्यास हैं। वेदव्यास जी का जन्म यमुना के द्वीप के समीप हुआ था इस कारण वेदव्यास को द्वैपायन कहा गया हैं। शरीर से कृष्णवर्ण होने के कारण कृष्णमुनि तथा वैदिक मंत्रो को यज्ञिक उपयोग के लिए तथा चार वेदो में विभक्त करने के कारण वेदव्यास भी कहा गया हैं।

स्वरुप - वर्तमान महाभारत एक लाख से अधिक श्लोकों का ग्रन्थ हैं इसलिए इसे शत - साहस्रीसंहिता भी कहते हैं
। महाभारत अठारह पर्वो में विभक्त हैं तथा पर्वो को पुनः अनेक उपपर्वों तथा अध्यायों में विभक्त किया गया हैं।
महाभारत में मुख्य रुप से कौरवों तथा पांडवो के बीच हुए युद्ध का वर्णन हैं,जिसमें कौरवों का सर्वनाश हुआ तथा अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म, हिंसा पर अहिंसा की जीत हुई। इस युद्ध में कौरवों के विरुद्ध न्याय तथा सत्य के पक्ष में स्थित पाण्डवों की विजय हुई। पाण्डवों की ओर से मन्त्रात्मक सहायता करने वाले श्री कृष्ण की प्रमुख भूमिका थी। यह कहा जा सकता है की कृष्ण इस ऐतिहासिक काव्य के नायक हैं।



महाभारत के अठारह पर्वो के नाम निम्न है:-



1) आदि पर्व        10) सौप्तिक पर्व
2) सभा पर्व        11) स्त्री पर्व
3) वन पर्व         12) शांति पर्व
4) विराट् पर्व       13) अनुशासन पर्व
5) उद्योग पर्व       14) आश्वमेधिक पर्व
6) भीष्म पर्व       15) आश्रमवासिक पर्व 
7) द्रोण पर्व        16) मौसल पर्व
8) कर्ण पर्व        17) महाप्रस्थानिक पर्व
9) शल्य पर्व       18) स्वर्गारोहण पर्व

इनके परिशिष्ट के रुप में हरिवंश-पर्व हैं,इस पर्व में भगवान् कृष्ण का जीवन चरित वर्णित हैं। हरिवंश-पर्व को मिलाकर ही श्लोक संख्या एक लाख होती हैं।

इन अठारह पर्वो में शान्ति पर्व सबसे बड़ा हैं, जिसमे कुल 14000 श्लोक है तथा महाप्रस्थानिक पर्व सबसे छोटा हैं, जिसमे कुल 115 श्लोक हैं। 

महाभारत का विकास:- महाभारत का विकास क्रमशः जय, भारत तथा महाभारत, इन  तीन रुप में हुआ तथा विविध उद्देश्य की पूर्ति के लिए अलग-अलग अवसरो पर रचना की गयी।


(क) जय - महाभारत का मूलरुप तथा प्रथम रुप जय को जाना जाता था। वर्तमान भारत के आदिपर्व के 65वे अध्याय से जय का आरम्भ हुआ था। जय में क्षत्रियों की उत्पत्ति का वर्णन हैं। जय का आधार कौरवों के ऊपर पाण्डवों की विजय कथा थी। व्यास के इस ग्रन्थ में 8800 श्लोक थे।


(ख) भारत - द्वितीय अवस्था भारत थी। जय का विस्तारित रुप भारत हैं, जिसमें 24000 श्लोक थे। भारतवंशी राजाओं (कौरवों एवं पाण्डवों) के वृत्त का वर्णन होने के कारण इस अवस्था का नाम भारत पड़ा। युद्ध तथा विजय के अतिरिक्त उनसे सम्बन्धित अन्य घटनाएँ भी थी।


(ग) महाभारत - इस अंतिम अवस्था वाले ग्रन्थ में कौरवों-पाण्डवों का पूरा वृत्त तो मूलकथानक के रुप में रहा ही परन्तु धर्म,अध्यात्म, इतिहास, भूगोल, नीतिशास्र, आचार-विचार आदि समस्त सांस्कृतिक विषयों को इसमें समाविष्ट किया गया। इससे महाभारत, भारतवर्ष का विश्वकोश बन गया। महाभारत शत-साहस्त्री संहिता हैं।



संस्करण:-

रामायण के सामान महाभारत की भी लोकप्रियता के कारण भारत में इसके कई संस्करण प्राप्त होते हैं। परन्तु मूल्यतः तीन प्रसिद्ध संस्करण हैं।

1) कलकत्ता संस्करण - यह संस्करण 1834-39 ई. में चार भागों में बिना किसी टीका के प्रकाशित हुआ था। इसमें हरिवंश-पर्व भी सम्मिलित हैं। दूसरी टीका अर्जुन मिश्र तथा नीलकंठ की टिकाओ के साथ 1875 ई. में हुआ था।


2) बम्बई संस्करण - नीलकंठी टीका के साथ महाभारत का यह संस्करण 1862 ई. में बम्बई में प्रकशित हुआ। इस संस्करण में हरिवंश नहीं हैं।


3) मद्रास संस्करण - महाभारत का एक संस्करण मद्रास से तेलगु लिपि में 1855-60 ई. में प्रकाशित हुआ था। इसमें हरिवंश पर्व तथा नीलकण्ठी टीका सम्मिलित हैं।



महाभारत में अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण अंश हैं जिन्होंने स्वयं ग्रन्थ का रूप ले लिया। इन ग्रंथो की रचना संस्कृत या अन्य भाषाओं में की गयी हैं।

1. शकुन्तलोपाख्यान - यह आख्यान आदिपर्व में आया हैं। 
2. नलोपाख्यान - यह आख्यान वनपर्व में आया हैं।
3. रामोपाख्यान - यह आख्यान आठ्यान वनपर्व में आया हैं।
4. सावित्र्युपाख्यान - यह आख्यान वनपर्व से ही हैं।

5. भगवद्गीता - यह भीष्मपर्व में श्रीमदभगवद् गीताप्रारम्भ नामक उपपर्व के रुप                 18 अध्यायों का ग्रन्थ हैं।

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