विश्वनाथ काव्य प्रयोजन

प्रयोजनमनुद्यिश्य न मन्दोऽपि प्रवर्तते।
अर्थात मन्दबुद्धि व्यक्ति भी निष्प्रयोजन किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता। मनुष्य जो भी कार्य करता हैं, उसमें उसका कोई न कोई प्रयोजन अवश्य होता हैं।
काव्य प्रयोजन का अर्थ हैं काव्य का उद्येश्य अथवा रचना की आंतरिक प्रेरणा शक्ति। संस्कृत काव्य जगत में ग्रन्थ के अध्यन के लिए अनुबंध चतुष्टय का निर्धारण किया गया।
अनुबंध चतुष्टय से तात्पर्य हैं कि ग्रन्थ का विषय, प्रयोजन, सम्बन्ध और अधिकारी। इस अनुबंध चतुष्टय का सर्वाधिक महत्वपुर्ण क्रम हैं - प्रयोजन। काव्य प्रयोजन का अर्थ हैं काव्य रचना से प्राप्त फल जैसे आनंद, यश, धन, व्यव्हार आदि। भारतीय आचार्यों ने काव्य को सोद्देश्य माना हैं अतः भरत मुनि से विश्वनाथ तक काव्य के प्रयोजन पर विचार करने की लंबी परंपरा रही हैं। विश्वनाथ से पूर्व कवियों द्वारा रचित काव्य प्रयोजन संक्षिप्त में इस प्रकार हैं-



1) आचार्य भरत के नाट्यशास्र के अध्यायों में नाटक के विभिन्न फलों का वर्णन किया है जैसे - क्रीड़ा, शम, हास्य, युद्ध, वध, उत्साह, धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की साधना आदि।
2) भामह - भामह ने भी काव्य के प्रयोजन का विवेचन किया हैं - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, कीर्ति तथा प्रीती।
3) दण्डी ने जनकल्याण को काव्य का फल माना हैं।
4) वामन ने काव्य के दृष्ट (प्रीति) तथा अदृष्ट (कीर्ति) के रुप में दो प्रयोजन स्वीकार किया हैं।
5) मम्मट - मम्मट ने अपने काव्य प्रकाश में छह काव्य प्रयोजन स्वीकार किए हैं। यश, अर्थ, व्यवहारज्ञान, शिवेतरक्षति(अमंगल का नाश), सद्य:परिनिर्वृति(परमानन्द), कान्तासाम्मित उपदेश।

विश्वनाथ का काव्य प्रयोजन 

चतुर्वर्गफलप्राप्तिः सुखादल्पधियामपि। 
काव्यदेव यतस्तेन तत्स्वरूपं निरूप्यते।।


विश्वनाथ ने न केवल वेदशास्रादि दुर्बोध ग्रंथो के अध्यन्न में असमर्थ मनबुद्धि लोगो की काव्य से चतुर्वर्ग प्राप्ति का सन्देश दिया हैं अपितु वेदादि शास्रो को समझने में समर्थ परिणत बुद्धि वाले लोगो को भी वेदादि की अपेक्षा काव्य से चतुर्वर्ग प्राप्ति की सलाह दी हैं। 
आचार्य विश्वनाथ ने प्रतिपादित किया है कि काव्य से चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की प्राप्ति संभव हैं। 

काव्य से धर्म प्राप्ति

वेदादि स्रोत कृत्य कर्मो जैसे सत्या, दया, अहिंसा आदि का पालन तथा अकृत्य कर्मो जैसे कपट, परादर, स्वार्थ आदि का परित्याग करना ही धर्म हैं। वेद, पुराण, शास्रों में धर्म का ज्ञान होता हैं। विश्वनाथ ने भी आचार्य मम्मट के समान कहा - काव्य से उपदेश मिलता हैं कि राम के समान कृत्य कर्मो का पालन करना चाहिए तथा रावन के समान अकृत्य कर्म का परित्याग करना चाहिए। अतः शास्र के समान काव्य से भी धर्म की प्राप्ति संभव है। 
काव्य से धर्म प्राप्ति भगवान नारायण के चरण कमलों की स्तुति द्वारा भी संभव हैं। देवताओं की स्तुति में स्रोत काव्य की रचना द्वारा धर्म को प्राप्त करते हैं।
काव्य से धर्म प्राप्ति संभव है इसका विश्वनाथ ने एक और तर्क दिया हैं - एक शब्द भी सम्यक ज्ञान पूर्वक सुप्रयुक्त किया जाए तो वह इह लोक में तथा स्वर्ग में कामनाओं को पूर्ण करता हैं। 


काव्य से अर्थ प्राप्ति

अर्थ की प्राप्ति काव्य से प्रत्यक्ष सिद्ध हैं।प्राचीन काल में श्रेष्ठ काव्यों की रचना पर कवियों को राजाओ से पुरस्कार मिलते थें। आधुनिक कल में भी काव्य से अर्थ प्राप्ति संभव हैं। 
आचार्य मम्मट ने कहा है - धावक को श्रीहर्ष से धन प्राप्त हुआ। 

काव्य से काम की प्राप्ति

विश्वनाथ ने कहा है काम की प्राप्ति अर्थ अर्थात धन के द्वारा हो सकती हैं। जब काव्य से धन की उपलब्धि हो गई तो उससे कामनाओं की पूर्ति अनायास हो जाती हैं।
  

काव्य से मोक्ष प्राप्ति 

काव्य से मोक्ष प्राप्ति संभव हैं। काव्य से धर्मफल के अनुसंधान से मोक्ष की प्राप्ति भी काव्य से होती हैं।
धर्म, अर्थ, काम में अनासक्ति हो जाने पर मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। मोक्षप्राप्ति के लिए उपयोगी उपनिषद आदि ग्रंथो के अध्ययन से कल्याण तथा योग्यता प्राप्त करने के कारण काव्य मोक्ष प्राप्ति का भी साधन बन जाता हैं। यद्यपि काव्य से साक्षात् मोक्ष प्राप्ति नहीं होती। अतः मोक्ष प्राप्ति में काव्य उपयोगी हैं।

इस प्रकार विश्वनाथ ने चतुर्वर्ग प्राप्ति को काव्य का प्रयोजन निर्धारित किया। उसके साथ ही यह भी प्रतिपादित किया कि वेदादि शस्रो से काव्य उत्कर्ष है क्योकि अल्पबुद्धि व्यक्ति को भी काव्य के द्वारा बड़ी सुगमता से चतुर्वर्गफल कि प्राप्ति संभव हैं।

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