मैं नारी हूँ












मैं नारी हूं

व्यक्तिगत हूं में सबकी प्यारी
क्यों न समझे मां बाप हमारी?
मेरे अस्तित्व को छिपा कर 
क्यों मुझे बेटो से नीचे दिखा कर करते हैं उसका गुणगान जो हैं केवल मेरे ही समान?
मेरा जन्म मानते हैं भूतकाल का कर्ज़ 
मुझे विदा करना समझते हैं भविष्य का फ़र्ज़।
मेरी हर चाहत को मार 
पहना दिया मुझे जिम्मेदारियों का हार।
कन्या से बन गई मैं पत्नी धन
क्यों न समझा मेरा हाल एक भी क्षण?
                 अपना बचपना छिपाते हुए
                 खुद से खुदको हिम्मत देते 
                 अपनी किस्मत को कोसती हुई
                 अकेले रसोईघर में रोती हुई 
क्यों मैंने सौंप दिया उसे खुद को जिसने मुझे नहीं मेरी पवित्रता को देखा ।
मैं अकेलेपन में डूबती रही
अपनों को खोजती रही
हूं मैं पवित्र यह बताती रही 
क्यों स्वयं को और झुकाती रही?
किसी की बेटी हूं मैं 
किसी की पत्नी हूं मैं
अब मां हूं मैं....
             यह एक तरफा रिश्ता
             मैं ही निभाती रही 
             मैं दलदल जैसे रिश्तों में            
             ओर फसती रही...
क्यों किसी को मेरी यह दुर्गति न दिखी ?
क्यों मैं यह सब अकेले सहती रही?                                                 
नहीं किसी का पुरुषत्व जागा
केवल में हूं गलत यह मुझ पर कलंक लगा।
मैंने तो उठा लिया सबका बीड़ा 
पर नहीं दिखी किसी को मेरी पीड़ा।
न देखा मैंने अपना बचपन 
न देखा मैंने अपना यौवन
हूं मैं अबला यह दिखाया
काटो की सेज पर सजाया।
हर युग में मुझको तरसाया 
कभी मुझे गलत तो कभी मुझे बेचारी बताया।
पर......
मैं रोशनी की किरण हूं
मैं गंगा की बहती पवित्र तरंग हूं
मैं घर की आंगन की तुलसी हूं
मैं निडर, अभिमानी, खुशियों की पूंजी हूं।
मैं देश की बेटी कल्पना चावला हूं
मैं शिव की अर्धांगी हूं
मैं श्री कृष्ण की यशोदा मां
मैं अग्नि परीक्षा में सफल सीता हूं
मैं झासी की रानी हूं
मैं धरती की जननी हूं
मैं नारी हूं..
मैं नारी हूं....

 .......जूही झा

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