भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता



संस्कृति-
संस्कृत भाषा में सम् उपसर्ग, पूर्वक कृ धातु में क्तिन् प्रत्यय के योग से संस्कृति शब्द निष्पन्न होता है।

सम् + कृ धातु + क्तिन् प्रत्यय = संस्कृति।

इस व्युत्पत्ति की दृष्टि से संस्कृति शब्द परिष्कृत कार्य अथवा उत्तम स्थिति का बोध कराता है। वस्तुतः यह शब्द मनुष्य की सहज प्रवृत्तियों, व्यवहारों और उनके परिष्कार का द्योतक है। व्यक्ति के मन, शरीर तथा आत्मा से सम्बन्ध नैसर्गिक शक्तियाँ संस्कृति से ही परिवर्धित और परिष्कृत होती हैं। मन और आत्मा की तृप्ति के लिए मनुष्य जो विकास या उन्नति करता है, वह समग्र रूप से संस्कृति के अंतर्गत आता है। सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् की अभिलाषा एवं संरक्षण ही संस्कृति का प्राण तत्व है। अतः मानसिक क्षेत्र में मानव के प्रत्येक सम्यक् कृति (उत्तम  कार्य) संस्कृति के अंतर्गत आते हैं। इसमें मुख्यतः सभी कलाओं, ज्ञान-विज्ञान, धर्म, दर्शन तथा विभिन्न सामाजिक प्रथाओं को ग्रहण किया जाता है।



डॉ.सम्पूर्णानन्द के अनुसार:- मानव की प्रत्येक कृति संस्कृति नहीं है। जिन कार्यों से किसी देश विशेष के समस्त समाज पर कोई अमिट छाप पड़े, वही स्थायी भाव ही संस्कृति है। संस्कृति वह आधार शिला है जिसके आश्रय से जाति, समाज व देश का विशाल भव्य प्रसाद निर्मित होता है। 


रामधारीसिंह दिनकर:-संस्कृति एक ऐसा गुण है, जो समस्त मानव जाति के जीवन में छाया हुआ है। संस्कृति एक आत्मिक गुण है, जो मनुष्य स्वभाव में उसी तरह व्याप्त है जिस तरह फूलों में सुगंध और दूध में मक्खन। इसका निर्माण एक या दो दिन में नहीं होता, युग-युगांतर में होता है।

.बी. टायलर:- संस्कृति एक जटिल सम्पूर्ण है जिसमें समस्त ज्ञान, विश्वास, नीति विधि, रीतिरिवाज, कलाएँ आदि समाहित हैं। जिन्हें मनुष्य किसी समाज का सदस्य होने के नाते अर्जित करता है।

सभ्यता-
सभ्यता = " सभायाम्  अर्हति इति " अर्थात् सभा में बैठने की योग्यता
सभा+यत् प्रत्यय = सभ्य:
सभ्य+तल्+टाप् प्रत्यय = सभ्यता।

सभ्यता शब्द का प्रधान अर्थ 'सामाजिकता' है। सभ्यता सामाजिक प्रतिबंधों तथा कत्तव्यों पर बल देती है। शिष्टाचारगत नियमों के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्व एवं सामाजिक आचरण भी सभ्यता के द्वारा निर्दिष्ट होता है। सभ्यता का सम्बन्ध मूर्त एवं भौतिक पदार्थों से है जो हमें उत्तराधिकार में भले ही प्राप्त नहीं हो परन्तु अपनी आवश्यकता के अनुसार हम इसका निर्माण करते हैं। अतः सभ्यता के द्वारा मनुष्य की भौतिक सुख समृद्धि तथा तदन्तर्गत व्यवहार का परिज्ञान होता है। इसी के आधार पर जो राष्ट्र भौतिक दृष्टि से अधिक प्रगतिशील होता है, वे स्वयं को दूसरे राष्ट्रों की अपेक्षा अधिक सभ्य मानते हैं।

संस्कृति और सभ्यता में अंतर
1) संस्कृति और सभ्यता की व्युत्पत्ति में अंतर है जिसके कारण दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं।
2) संस्कृति आंतरिक उन्नति है और सभ्यता से बाह्य (भौतिक) उन्नति सूचित होती हैं।
3) संस्कृति आंतरिक उन्नति है इस कारण संस्कृति का अनुकरण नहीं किया जा सकता है, उसे अपनाना होता है। किन्तु सभ्यता का अनुसरण सरलता से किया जा सकता है।
4) संस्कृति को माप सकने का कोई भी मापदंड नहीं है, किन्तु सभ्यता को मापने का मापदण्ड उपलब्ध है।
5) संस्कृति विकसित नहीं होती किन्तु सभ्यता का निश्च्य ही विकास होता है। देश की सभ्यता का विकास स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है।

भारत के प्राचीन साहित्य में भारतीय मनीषियों ने संस्कृति शब्द के लिए 'धर्म' शब्द का प्रयोग किया था और सभ्यता के लिए 'अर्थ' शब्द का प्रयोग किया था। अतः आज दोनों शब्द परस्पर भिन्न होते हुए भी, एक दूसरे से संयुक्त हैं। उदाहरणतः व्यक्ति और समाज। जिस प्रकार व्यक्ति और समाज एक दूसरे के सम्पूरक हैं तथा एक दूसरे पर आश्रित हैं ठीक उसी प्रकार संस्कृति और सभ्यता एक दूसरे के सम्पूरक हैं। संस्कृति के बिना किसी देश की जाति सभ्य नहीं कहला सकती और सभ्यता के बिना संस्कृति की कल्पना कर पाना भी दुष्कर है। विश्व की विभिन्न संस्कृतियों में भारतीय संस्कृति को सर्वोच्च पद की अधिकारिणी बना दिया गया है।

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ
1) सर्वाधिक प्राचीन - भारत तथा मिस्र की संस्कृति समकालीन थी परन्तु वर्तमान काल में मिस्र संस्कृति का नाम मात्र अवशिष्ट रहा है। प्राचीन वेद ग्रन्थ और सिन्धु घाटी की खुदाई से प्राप्त अवशेष  भारतीय संस्कृति के प्राचीन होने के साक्ष्य हैं। 

2) अक्षुण्ण प्रवाह - भारतीय संस्कृति का प्रवाह प्रारम्भ से आज तक नहीं हटा अर्थात् अटूट रहा है। विश्व में कई संस्कृतियों का निर्माण हुआ तथा काल के प्रवाह में लुप्त हो गई परन्तु भारतीय संस्कृति दीर्घ जीवी सिद्ध हुई। युगों में परिवर्तन हो जाने पर भी इसने अपने मौलिक स्वरुप को भी नहीं त्यागा और आज तक क्रियाशील है।

3) समन्वयभाव तथा विचार सहिष्णुता - विश्व की अन्य संस्कृतियों ने अपने ही देश में पनपने वाली नवीन प्रवृत्तियों को सहन नहीं किया परन्तु भारतीय संस्कृति ने विभिन्न प्रवृत्तियों और प्रभावों को सहर्ष सहन कर लिया। इस संस्कृति ने प्रत्येक व्यक्ति को विचार, धर्म एवं विश्वास की स्वतंत्रता दी। विविध सम्प्रदायों के प्रति सहिष्णुता तथा सम्मान का भाव रखना भारतीय संस्कृति का अपूर्व तत्व है। कई आराध्य देवी-देवताओं को स्वीकार किया, न कि भगवान के रूप में पूज्य आराध्यदेव ही हैं।

4) गहनशीलता - भारतीय संस्कृति ने विभिन्न नई प्रवृत्तियों एवं बाह्य प्रभावों को केवल सहन ही नहीं अपितु उन देशी तथा विदेशी नवीन तत्त्वों को आत्मसार करके अपना अंग ही बना लिया। भारतीय संस्कृति समुद्र के समान है अर्थात् जिस प्रकार समुद्र विभिन्न दिशाओं से आई हुई नदियों को समाहित कर लेता है उसी प्रकार भारतीय संस्कृति ने विभिन्न संस्कृतियों को अपने अंदर समाहित कर रखा है।

5) आशावादी - जीवन में अनेक विपत्तियाँ आने पर भी, उन सभी को पार करके अपना लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। इस आशावादी तत्व का भारतीय संस्कृति ने भली-भाँति अनुसरण किया है।

6) सर्वांगीणता - सर्वांगीणता का अर्थ है, सर्वांगीण विकास। भातीय संस्कृति ने चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष) और आश्रमव्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास) को अपनाया है। जिसके द्वारा मनुष्यों का सर्वांगीण विकास संभव है। 

7) धर्मपरायणता - धर्मपरायणता का अर्थ है, कर्त्तव्य परायण अर्थात् कर्तव्य का पालन करना। अतः भारतीय संस्कृति कर्त्तव्य परायण है।

8) विश्वकल्याण एवं विश्वबन्धुत्व की भावना - भारतीय संस्कृति केवल एक पक्ष, जाति, धर्म का ही विकास या उन्नति नहीं करती है अपितु समस्त मनुष्यों के प्रति सम्मान भाव भी रखती है। सभी को समान अवसर प्रदान करती है। इसी प्रकार भारतीय संस्कृति में अनेक भाषाएँ रीति-रिवाज़, खान-पान, त्यौहार आदि का समावेश है।

9) आस्था एवं कर्मवाद - परमात्मा के प्रति आस्था तथा श्रद्धाभाव रखना भारतीय संस्कृति की मूल विशेषता है। भारतीय संस्कृति परमात्मा को संसार का कर्त्ता-भर्त्ता मानते हैं तथा भारतीय संस्कृति कर्मप्रधान संस्कृति है। मनुष्य को निरंतर कर्म करते रहना चाहिए तथा कर्म के प्रति कभी भी आलस नहीं करना चाहिए, यह बात भारतीय संस्कृति ने स्वीकार की है।

10) आध्यात्मिकता - भारतीय संस्कृति में मूलतः अध्यात्म एवं दर्शनीयता का समन्वय है।

11) त्याग भावना - भारतीय संस्कृति त्याग भावना युक्त संस्कृति है। एक-दूसरे के प्रति त्याग भाव रखते हैं।

12साम्यवाद - भारतीय संस्कृति साम्यवादी संस्कृति है जिसने समाज में सभी को समान अधिकार व अवसर प्रदान किए हैं।

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